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गणित, प्रेम और क्रांति

गणित, प्रेम और क्रांति

एक और एक मिलकर दो हुए, यह गणित की मिसाल है, एक और एक को मिलने न दें, यह कूटनीति की चाल है।। एक और एक जब ग्यारह बनें, यह संगठन की जीत है, एक और एक जब एक ही रहें, यह सच्चे प्रेम की रीत है।। एक को एक के विरुद्ध करें, यह राजनीति का खेल है, एक और एक जब अनगिनत बनें, तब क्रांति की बेल है।।

आज़ादी या अकेलापन?

आज़ादी या अकेलापन

जब शाम ढले, पर कोई राह न देखे, सुबह उजाले में, कोई संग ना चले। राहें खुली हों, मगर मंज़िलें धुंधली, कोई रोकने वाला न हो, न कोई संभाले। ख़्वाबों का शहर हो, पर सन्नाटे गहराए, शब्दों का समंदर हो, पर जज़्बात जम जाएं। खुला आसमान हो, मगर परों में भार हो, सफ़र तो हो, पर हमसफ़र की दरकार हो। क्या यही आज़ादी है, जो दिल को रास आए? या फिर ये तन्हाई है, जो धीरे-धीरे खाए?

सफ़र

सफ़र

जाने-पहचाने और शांत रास्तों पर जब मैं चला, पैरों तले मिट्टी की नर्मी को महसूस किया। सामने वही बूढ़ा बरगद खड़ा था, टूटी टहनियों की आँखों में एक पहचान थी। पल भर को लगा जैसे मैं खुद से मिल गया। ज़िंदगी अब समझदार हो चली है, पर तलाश वही पुरानी खुशियों की है। तो चलो, उसे फिर उसी मासूम नज़र से देखें, जिससे बचपन ने हर रंग को महसूस किया था। भाग-दौड़ में उलझी ज़िंदगी, चलो कुछ पल चुरा लें,

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मौन और स्मित

मौन और स्मित

वाणी विष बन जाती अक्सर, सुनी सुनाई बात बेकार आँखें भी खेल करे हैं कभी इन सब में भरम के हैं आसार, तू अंतर मन में झांक ज़रा तेरे पास हैं दो आधार मौन है रक्षा कवच, और स्मित है स्वागत द्वार ।।

मुश्किल और आसान

मुश्किल-और-आसान

बरसों बरस – किसी जुस्तजू की तलाश में किसी आरजू की आस में किसी बदली की प्यास में किसी ख्वाब में या सराब में जिंदगी गुजार देने के बाद भी कितना आसान है – थोड़ा और इंतजार । पर कितना मुश्किल है ये मानना कि सब बेमानी था – मंज़िल भी, मुसाफ़िर भी, मसाफ़त भी ।।

रसियन नाच

रसियन नाच

जब मेरी पत्नी सो रही हो, और जब बिटिया और उसकी आया सो रही हो । और जब सूर्य एक धुंध में चमकता सफेद गोला हो – चमकते पेड़ों के ऊपर । जब मैं अपनी स्टडी में, नाच रहा हूं – नग्न, बदसूरत आईने के सामने, सर के उपर अपनी शर्ट घुमाते हुए हौले से गाते हुए – मैं कितना तन्हा हूं, मैं पैदाइशी तन्हा हूं मैं तन्हा ही अच्छा हूं जब मैं अपनी परछाई देख कर गुण गान कर

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कहानी

कहानी

जीवन बस एक कहानी, हम लिखते लम्हों की ज़ुबानी । चाहे वो वक़्त गुज़िश्ता हो , या चाहे आने वाला कल । भरपूर मिले वो लम्हे भी और मिल न सके वैसे भी पल। यादों, बातों, नातों के पल , कुछ चाह के पल, कुछ मोह के पल आशाओं और उम्मीदों के, नाकामी और निराशा के, कुछ लहरों जैसे हल्के पल, मस्ती के पल, फ़ुर्सत के पल । कुछ बोझिल मेरे ज़ेहन पर हैं, इक ठसक के पल इक कसक

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शहर

शहर

क्या शहर में भी कोई चेतना होती है ? किसे कहोगे शहर ? सड़कें, इमारतें, वाहनों के कोलाहल को, या फिर लोगों के मेले को- यंत्रवत,अपने-अपने कामों में लगे हुए लोग । क्या कोई जगह भी जीवंत हो सकती है ? कुछ अलग है अपने शहर में लौट के आना, निकट,सजीव, जीवन से भरपूर । जैसे पुराना दोस्त यूँ ही कहीं मिल जाए, जैसे गुज़रा समय, बिसरी बातें, बीते पल फ़िर सामने आ जाएं, निजी, भावपूर्ण, नॉस्टैल्जिक ! हाँ शहर

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बादल

रंग बदलते, रूप बदलते, भाव बदलते हरपल, जीवन के ही किस्से कहते आसमान के बादल । कभी ये नभ में उड़ते जाऐं बनके ऊंची पतंग, जैसे मन में जाग रही हो कोई नई उमंग । कभी देख सकते हो इनमे, शेर भालू या बंदर, कभी लगे ये भूत के साये प्रगटें अंदर के डर, कोई बादल श्वेत जोश में भंगड़ा करता है, कोई बोझिल श्याम रंग में सैड सांग गाता है । इनमे तुम जीवन के नए सपने बुन सकते

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त्रिदेव

Brahma Vishnu Mahesh : Tridev

ब्रह्मा विष्णु महेश मन की ये तीन शक्ति निज के ये तीन रूप अंतर के ये सर्वेश । भीतर छुपे ब्रह्मा से ही प्रेरित हुए नवविचार,नवसर्जन, नवयुग । फिर बीज को मैने विष्णु बनकर बरगद की तरह पनपाया, फैलाया । अब पत्तों को झड़ना है, जीवन धूप को ढलना है, मुझको शंकर बनना है । ब्रह्मा विष्णु महेश मन की ये तीन शक्ति निज के ये तीन रूप अंतर के ये सर्वेश ।।

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I am Ajay Bhadoo. IAS Officer, serving as Joint Secretary to the President of India.

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