बरसों बरस –
किसी जुस्तजू की तलाश में
किसी आरजू की आस में
किसी बदली की प्यास में
किसी ख्वाब में या सराब में
जिंदगी गुजार देने के बाद भी
कितना आसान है –
थोड़ा और इंतजार ।
पर कितना मुश्किल है ये मानना कि सब बेमानी था –
मंज़िल भी, मुसाफ़िर भी, मसाफ़त भी ।।
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