कितने रूप बदलती है ये रात,
कभी लम्बे सुनसान रस्तों की मौन रात्रि,
तो कभी यादों और बातों का रतजगा लगा हो जैसे ।
कभी इतने अंधेरे के खुद को भी पहचान न सकूँ,
तो कभी ख़यालों के उजाले की जिनमे हर सच्चाई देख सकूँ ।
कभी चीजें इतनी अलग दिखें जैसे दिल में छिपे अनजाने डर,
तो कभी सितारे राह दिखाते हैं के आगे बढ़ और मंजिल चुन ।
कभी ये एहसास की ज़िंदगी भी इस रात की तरह बेवज़ह बेमानी है,
तो कभी सुबह का इंतज़ार की फिर कोई इरादा कोई मक़सद है ।
कभी ये हक़ीक़त की ये रात भी तन्हा है मेरी तरह, तो कभी ये तस्व्वुर के रात भर पहलू में तुम हो ।
सच में – कितने रूप बदलती है ये रात ।।
Social Profiles