शहर

क्या शहर में भी कोई चेतना होती है ?

किसे कहोगे शहर ?

सड़कें, इमारतें, वाहनों के कोलाहल को,

या फिर लोगों के मेले को-

यंत्रवत,अपने-अपने कामों में लगे हुए लोग ।

क्या कोई जगह भी जीवंत हो सकती है ?

कुछ अलग है अपने शहर में लौट के आना,

निकट,सजीव, जीवन से भरपूर ।

जैसे पुराना दोस्त यूँ ही कहीं मिल जाए,

जैसे गुज़रा समय, बिसरी बातें, बीते पल फ़िर सामने आ जाएं,

निजी, भावपूर्ण, नॉस्टैल्जिक !

हाँ शहर में भी चेतना हो सकती है –

साँस लेती, धड़कती हुई चेतना ।।

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I am Ajay Bhadoo. IAS Officer, serving as Joint Secretary to the President of India.

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